आदिवासी राजनेता आदिवासियों के सौदेबाज हैं।
आदिवासी राजनेता आदिवासियों के सौदेबाज हैं। ----------------------------------------------------------- आदिवासी अपने हक अधिकारों की रक्षा के लिए आंदोलन करते हैं । जल, जंगल और जमीन जिस पर सबसे पहले वाशिदें के रूप में उनका अधिकार है, उसकी रक्षा के लिए पूर्वजों ने पोटो हो,डिबर हो, पाण्डु हो, बिरसा मुंडा, सिदो-कान्हू मुर्मू, वीर बुधु भगत, तेलंगा खड़िया जैसे शहीद पैदा किए, लेकिन वर्तमान में आदिवासी राजनेता व्यक्तिगत हित के लिए आदिवासी समाज को भी बेचते हैं। आदिवासी जन आंदोलन के इतिहास में इसके कई उदाहरण हैं। इसी पृष्ठभूमि में यह आलेख तरंग भारती की 1-15 जुलाई 2007 के अंक में प्रकाशित हुआ। अंग्रेजी हुकूमत के दरमियान पूरे झारखंड के आदिवासियों पर जबरदस्त कहर बरपाया गया। उनसे बेगारी करवायी जाती थी। अपनी ही जमीन का लगान देने के लिए उन्हें मजबूर किया गया। सामूहिक भूमि व्यवस्था पर प्रहार करते हुए पट्टा सिस्टम लागू किया गया। बाहर से आए जमीदार एवं साहूकारोंं के लिए यही उचित अवसर था जब उन्होंने आदिवासी भूमि व्यवस्था यथा खेत-टांड एवं गांव अपने नाम पट्टा में लिखवा लिया। लंबे संघर्ष और बलिदान ...